Sunday, October 25, 2009

मर्ज़

ला-इलाज मर्ज़ की दवा तो कीजिये,
और कुछ न सही, दुआ तो कीजिये.

सजा हमें जो दे चुके कई खताओं की,
आप खुद भी यूँ कभी, खता तो कीजिये.

बेकरार हो गए हैं, तेरे इंतज़ार में,
बीमार का अब हाल, पता तो कीजिये.

मशहूर हैं किस्से अपनी वफाओं के भी,
बेवफाई का हक, अदा तो कीजिये.

यूँ ही करें सजदा, तन्हाई के आलम में,
"साबिर" किसी पत्थर को खुदा तो कीजिये.

कौन है वो ??

यार है वो, दिलदार है वो,
मगर दिल का करार है वो,

मेरी ही तरह, बेकरार है वो,
ग़ज़ल है वो, अशार है वो,

यादों से मेरी, फरार है वो,
जीत है मेरी, और हार है वो,

खफा ही सही, लेकिन प्यार है वो,
"साबिर" मेरी तरह, गुनाहगार है वो,

अनजान है लेकिन, मददगार है वो,
पहली बारिश है वो, बहार है वो,

मेरा भरोसा, मेरा ऐतबार है वो,
मेरी आदतों का शिकार है वो,

पूरे चाँद का दीदार है वो,
मेरी ज़िन्दगी में शुमार है वो,

मेरा नशा, मेरा खुमार है वो,
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल में असरदार है वो.

Tuesday, October 20, 2009

इंतज़ार

तमाम उम्र कट गयी इंतज़ार में कहाँ,
हिज्र-ए-यार का मज़ा वस्ल-ए-यार में कहाँ

चाहता हूँ ख्वाबों में उनकी परछाइयों को,
कमबख्त सुकून है उनके दीदार में कहाँ

खुश हो जाता है दिल उनके इनकार से अक्सर,
वो चैन है लेकिन उनके इकरार में कहाँ

बरक़रार है हुस्न का अपना एक अंदाज़ अब तक,
और हम सोचते थे ये जलवा है बेकार में कहाँ

लुत्फ़ मिलता है उनकी बेवफाइयों से "साबिर",
उनकी वफ़ा अपने शुमार-ए-ऐतबार में कहाँ

अक्स

हर जज़्बात निभाते उसे देखा है मैंने,
उसे खुद से छुपाते देखा है मैंने,

है कुछ ख्वाहिशें ऐसी की ये दिल मचल जाये,
और बे-आरजू उसे मचलते देखा है मैंने

संभलना मुश्किल है यूँ तो ठोकर खाकर,
बिना ठोकर के संभलते उसे देखा है मैंने

नहीं आसान निभा पाना दोस्ती ता-उम्र औरों से,
खुद से रंजिश ता-उम्र निभाते उसे देखा है मैंने

अहसान-फरामोश हो जाते हैं यहाँ लोग औरों से,
और खुद का ही अहसानमंद होते उसे देखा है मैंने

न जाने किस शख्स का ज़िक्र कर रहे हो "साबिर" ?
के आज आईने में अपना ही अक्स देखा है मैंने

Saturday, October 17, 2009

चंद शेर

हिमालय से भी बुलंद उसकी चोटियाँ होती हैं,
ख़ुशनसीब हैं वो बाप जिनकी बेटियाँ होती हैं !

"साबिर" उनकी रहमत, आखिर बना हूँ इंसान,
परवरदिगार आज तेरा हक अदा
किया

वक़्त ऐसा बिता पाना मुश्किल है अभी,
खुद से नज़र मिला पाना मुश्किल है अभी

साबिर क्या कीजे जब ये गज़ब हो जाए,
दर्द की दावा ही दर्द का सबब हो जाए
अंदाज़ कुछ तो है उसमे बात करने का,
वो बुरा भी कहे तो अदब हो जाए


जिंदगी का मुश्किल लम्हा ढूंढ रहा था, मैं भीड़ में उसे तनहा ढूंढ रहा था,
मैंने उसमे किसी फ़रिश्ते को पाया,

वो भी मुझ में इंसान ढूंढ रहा था !!!

करीने से रक्खा हुआ सामान बना दिया,
तुमने मुझे आदमी से इंसान बना दिया !

मेरी शक्ल तो वही है पर आएने बदल गए,
तेरी एक बात से ज़िन्दगी के मायने बदल गए !

"साबिर" उसकी यही बात मुझे पसंद आती है,
वो इनकार करने में भी बड़ा वक़्त लगाती है !

जिंदगी में कभी ऐसे रिश्ते भी बन जाते हैं,
इंसान के दोस्त फ़रिश्ते भी बन जाते हैं !

"साबिर" वो दोस्त मददगार रहा,ज़िन्दगी के मुश्किल वक़्त में,
लगता है उसने ज़िन्दगी को बड़े करीब से देखा है !

मुहब्बत के ये अंदाज़, "साबिर" बड़े लज़ीज़ हैं,
अपनी ख़ुशी से ज्यादा मुझे उनके गम अज़ीज़ हैं !

इससे पहले की ये जज़्बात कम हो जायें,
आओ में और तुम मिलके हम हो जायें !

इस अदा से मुझ पर एहसान कर गए वो,
जान कर भी मुझ को अनजान कर गए वो,
मेरे सलाम पर वोह ज़रा मुस्कुरा दिए,
और मुस्कुरा के मुझ को सलाम कर गए वो !

शायरी चाहने वालों की बस्ती अब आबाद नहीं मिलती,
छोड़ "साबिर" अब शेर सुनाने पर दाद नहीं मिलती !

खुदा ने बख्शीहैं सारे जहाँ की खुशियाँ,
ये इत्तेफाक नहीं की तुम दोस्त हो मेरे !

गिले-शिकवे भी किफायत से करो,
"साबिर" रंजिश भी इनायत से करो !

"साबिर" उम्मीद नहीं अब उनके इकरार की,
बस वजह समझ न आई हमें इनकार की !

फखत कुछ ख्वाहिशें ऐसी,की हर आरजू एक इरादा निकले,
बहुत कम निकले मेरे अरमान,मगर फिर भी कुछ ज्यादा निकले !

मनोवेदनाओं का ये सागर निरंतर सा है,
और उनसे झूझ रहा कोई धुरंदर सा है !

रश्क था ज़माने को इस,परिन्दे की ऊँची उडानों पर,
मगर रातों के अंधेरों में,बे-आशियाँ है वो !

रस्म मुहब्बत की कुछ इस तरह बिताई हमने,
के खुद से क्यूँ इस कदर रंजिश निभाई हमने ?इश्क में दानिशमंदी का जानिब नहीं हूँ मैं,
मगर "साबिर" उसके मुनासिब नहीं हूँ मैं !
(दानिशमंदी = दिमाग का इस्तेमाल, जानिब = पक्षधर )
मेरी शायरी उसे मेरा दीवाना बना दे,
"साबिर", साबिर हूँ, ग़ालिब नहीं हूँ मैं !!


लगता है उसकी रज़ा कुछ और है,
नाकाम मुहब्बत का मज़ा कुछ और है !
तौबा मयस्सर है बस गुनाहगारों को,
बेगुनाहो की यहाँ सजा कुछ और है !!


सूफी गीत

चलते चलते रुक रहा हूँ,
रुकते रुकते चल रहा हूँ,
तेरे इश्क में मेरी जाने-जान,
गिर रहा हूँ, संभल रहा हूँ.

तेरी मुहब्बत मेरी आरजू,
तू ही तू है बस मेरी ज़िन्दगी,
तेरा आसरा, तेरा सहारा,
तेरी इबादत, मेरी बंदगी,

इन आदाओं का में कायल,
हरदम, हमेशा, हर पल रहा हूँ,

चलते चलते रुक रहा हूँ.........

अधूरी ख्वाहिशें !!

ज़र्रा हूँ कायनात की तमन्ना है,
तुमसे बस एक मुलाक़ात की तमन्ना है.

कैद कर लो हसीं जुल्फों के साए में,
दिलकश किसी हवालात की तमन्ना है.

इनकार कर न पाओ, "साबिर" की मुहब्बत का.
मुझे खुदा से ऐसी औकात की तमन्ना है.

There is something divine about you...


There is something divine about you...

The freshness of the roses,

The child like innocence,

The purity of the rain drops,

And I express the deep reverence.

There is something divine about you...

The honesty and the dignity

are like your integral part,

I must congratulate you

for being so good at heart.

There is something divine about you...

The aura of yours is a

mirror of the supreme divine,

just a glimpse of yours

transforms the whole day of mine.

There is something divine about you...

Being a good human being

is all what you inspire,

you always remain like this,

is my honest and sincere desire.

There is something divine about you...

The language might not help

and words might not convey,

It is almost impossible to express

what I wanted to say.

There is something divine about you...

This is just like a dream

and I wish it does not end

Just need a favor from you,

please always be there as a friend

There is something divine about you...

मुहब्बत की इन्तहां ?

जिंदगी की मुश्किल राहों को इस कदर आसन न कर,
"साबिर" उसे चाहता है तो फिर उसे परेशान न कर.

दुआ कर खुदा से वोह जैसा है वैसा ही रहे,
उसकी फ़िक्र है तो उसे इस दिल का मेहमान न कर.

हाल-ए-दिल कहा उस से इस गुनाह की तौबा,
थोडी शर्म बाकी हो तो खुद पे ये एहसान न कर.

उसका दीदार ही काफी, मिलने के बातें भूल जा,
तू अपनी औकात समझ, ज़मीन को आसमान न कर.

साबिर लंगूर हो गए ??


उनसे जो दूर हो गए, सपने चकनाचूर हो गए,
कल तक गुमनाम थे हम, रातों रात मशहूर हो गए!

उनके बहाने सुन-सुन कर, हम भी मजबूर हो गए,
उनका मिलना तो मुश्किल था, हाँ दीदार ज़रूर हो गए!

हमने ज्यादा तारीफ कर दी, वो ज़रा मगरूर हो गए,
थोड़े ज़ख्म छिपा रक्खे थे, अब वो नासूर हो गए!

उनका ज़िक्र जैसे ही आया, सारे गम काफूर हो गए,
वो ज़रा मुस्कुरा क्या दिया, माफ़ सारे कसूर हो गए!

आलिशान शहर थे हम, भूकंप के लातूर हो गए,
गले में मोतियों का हार, और साबिर लंगूर हो गए!