ये चलन जाने कब से है,
इश्क़ का वास्ता रब से है !
यार तो सब ही हैं अपने,
पर रंजिशें भी सब से है !
जिस लम्हे तूने दिल तोडा,
तेरे मुरीद हम तबसे हैं !
उसे रंज है मेरी रुसवाई का,
अंजान मगर वो सबब से है !
या खुदा तेरे इंसाफ़ का सदका,
हालात तो मेरे गज़ब से हैं !!