Sunday, March 3, 2013

चलन


ये चलन जाने कब से है,
इश्क़ का वास्ता रब से है !
यार तो सब ही हैं अपने,
पर रंजिशें भी सब से है !
जिस लम्हे तूने दिल तोडा,
तेरे मुरीद हम तबसे हैं !
उसे रंज है मेरी रुसवाई का,
अंजान मगर वो सबब से है !
या खुदा तेरे इंसाफ़ का सदका,
हालात तो मेरे गज़ब से हैं !!

Friday, October 19, 2012

स्वतंत्रता


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है,
सरे आम, सरे राह, सनन हो रहा है !

जनता की चिंता से मतलब नहीं है,
देश की चिंताओं पे मनन हो रहा है !

दोस्ती-दुश्मनी का तक़ाज़ा नहीं है,
गठबँधन का फ़िर से गठन हो रहा है !

बेईमानी का भी ये तरीका नहीं है,
ओछी नैतिकता का पतन हो रहा है !

वो कहते हैं इससे कोई नाता नहीं है,
पर तार-तार मेरा चमन हो रहा है !

Friday, September 28, 2012

हस्ती


ये जलवा अपनी हस्ती में है,
जीने का मज़ा मस्ती में है !

नशा तो महँगी शराब का है,
पीने का मज़ा सस्ती में है !

चल रही है अमीरों की दावत,
और फाका आज बस्ती में है !

इनकार-इकरार, वस्ल-हिज़्र,
इश्क का मज़ा परस्ती में है !

कश्ती तो साहिल पर है "साबिर",
मगर तूफाँ आज कश्ती में है !!

Thursday, September 20, 2012

गिलहरी


अखरोट खाती हुई गिलहरी सी कोई,
मेरी ज़िन्दगी में आई थी, परी सी कोई !

महक उठता था दिल उसके तसव्वुर से,
गधे को मिल गई थी घास, हरी सी कोई !

उसकी आमद, ख़ुदा की नेमत सी लगी,
कड़कती सर्दियों में धूप, सुनहरी सी कोई !

मौका भी ना मिला इज़हार-ए-इश्क करने का,
तक़दीर की चाल थी बड़ी, गहरी सी कोई !!

Thursday, August 23, 2012

तुम


अजब हो तुम, ग़जब हो तुम,
मेरी ज़िन्दगी का सबब हो तुम !

गीता के श्लोक, कुरान की आयतें,
मेरा धरम, मेरा मज़हब हो तुम !

और क्या कहूँ, मैं शान में तुम्हारी,
जो मैंने चाहा, वो सब हो तुम !!!!

Sunday, January 8, 2012

वो


मेरे पूछने पर इन्कार नहीं कर पाते हैं वो,
खुद मुहब्बत का इज़हार नहीं कर पाते हैं वो !

मैं खुश हूँ उनसे ख्वाबों-ख्यालों में मिलकर,
लेकिन कभी मेरा दीदार नहीं कर पाते हैं वो !

यूँ नहीं की मुहब्बत से ऐतराज़ है उन्हें,
मगर फ़िर मुझसे प्यार नहीं कर पाते हैं वो !

सोचा था हाल-ए-दिल कहेंगे उनसे मिलकर,
मेरे इरादों पर ऐतबार नहीं कर पाते हैं वो !

"साबिर" क्या कहूँ उनके रूठने का सबब,
मुझसे कभी तकरार नहीं कर पाते हैं वो !

Wednesday, December 14, 2011

कफ़न पे सेहरा


ख़्वाब सुनहरा है मेरा,
ज़ख्म भी गहरा है मेरा !

कैद है बस तेरी यादें,
और दिल पे पहरा है मेरा !

जनाज़े में यूँ तेरा आना,
जैसे कफ़न पे सेहरा है मेरा !

अब और तुझे लुभाऊँ कैसे,
बदसूरत ये चेहरा है मेरा !

क्या करूँगा मैं चल कर,
वक़्त भी ठहरा है मेरा !

हाल-ए-दिल सुनाता मगर,
दिलबर भी बहरा है मेरा !

Saturday, December 3, 2011

उलझनें


उसे उलझनें देकर,
मैं बस निहारता रहा, एक तक.....
क्यूँकी वो और भी मासूम
और हसीन नज़र आ रही थी,
जब वो सुलझा रही थी,
उन उलझनों को.......
जी किया एक बार कि
ख़त्म कर दूँ तमाम उलझनों को......
मगर हिम्मत ना कर पाया,
मैं दख़ल देने की....
कौन जाने फ़िर कब
ऐसा नज़ारा नसीब होता......
मगर फ़िर जब उसने इशारे से,
मदद की गुहार की.........
जाने कब मैंने ख़ुद ही ख़त्म कर दिया
सारी उलझनों और मुश्किलों को......
और जब वो धीरे से मुस्कुराई,
उसके रुख़ का सुकूँ, कोई नूर बन गया था......
मैं बस इबादत करता रहा.......
"साबिर", मैं जीना सीख रहा हूँ.......
शायद उलझनें जीना सहल कर देती हैं..........

Saturday, November 19, 2011

जीना इसी का नाम है........


जीना इसी का नाम है........

ग़म में मुस्कुराना.......
ख़ुशी में आँसू बहाना......
बड़ा ही मुश्किल काम है.......
जीना इसी का नाम है........

अपनी बरबादियों का जश्न मनाना......
ढूंढना जीने का कोई बहाना.......
बड़ा ही मुश्किल काम है.......
जीना इसी का नाम है........

अपने जीते-जी मर जाना.......
अपनी ही कब्र पे फूल चढ़ाना.......
बड़ा ही मुश्किल काम है.......
जीना इसी का नाम है........

दिल में दर्द आँखों में ख़ुशी दिखाना.....
खुद ही से अपने ग़मों को छिपाना.......
बड़ा ही मुश्किल काम है
जीना इसी का नाम है........

Sunday, October 2, 2011

कहकशाँ


क़ामयाबी की कहकशाँ में रहने दो,
ग़र मुझे इस गुमाँ में रहने दो !

परिंदा हूँ, ऊँची उडाँ है मेरी,
तुम मुझे आसमाँ में रहने दो !

तमाम मंज़िलें हो जाएँगी हासिल,
अपने सायों को कारवाँ में रहने दो !

ऊब चुका है दिल गुलों की ख़ुशबू से,
इन काँटों को गुलिस्ताँ में रहने दो !

"साबिर" तुम्हारी वफ़ा का अंदाज़ न भाया,
मेरी रक़ीब को आश्याँ में रहने दो !