वक़्त और हालात बदल गए,
अब तो दिन-रात बदल गए !
था उनके जवाब का इंतज़ार,
अफ़सोस वो सवालात बदल गए !
न बदले गर कभी ज़र्र:(१) भी,
बदले तो काइनात(२) बदल गए !
उन्हें गुमान, अहसास में कमी है,
हम समझे जज़्बात बदल गए !
अब किसका शिकवा है "साबिर",
खुद तुम्हारे ख्यालात बदल गए !
१ ज़र्र: = कण २. काइनात = ब्रह्माण्ड, सृष्टि
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
ReplyDeleteshukriya !!
ReplyDeletewaah waah....aakhiri ke 2 sher khaskar ekdum nishane per lagte hain...bahut achhe
ReplyDeletebahut bahut shukriya AD bhai !!!
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