Wednesday, March 10, 2010

बदलता वक़्त

वक़्त और हालात बदल गए,
अब तो दिन-रात बदल गए !

था उनके जवाब का इंतज़ार,
अफ़सोस
वो सवालात बदल गए !

बदले गर कभी ज़र्र:() भी,
बदले तो काइनात() बदल गए !

उन्हें गुमान, अहसास
में कमी है,
हम समझे जज़्बात बदल गए !

अब किसका शिकवा है "साबिर",
खुद तुम्हारे ख्यालात बदल गए !

ज़र्र: = कण . काइनात = ब्रह्माण्ड, सृष्टि

4 comments:

  1. ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

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  2. waah waah....aakhiri ke 2 sher khaskar ekdum nishane per lagte hain...bahut achhe

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