ज़िन्दगी जीने की उमंग सी जागी है,
मेरे दिल में तरंग सी जागी है !
उम्मीद-ओ-आरज़ू में इस क़दर हूँ रोशन,
मानो तहखाने में सुरंग सी जागी है !
अंदाज़ कुछ जुदा है, ऊँची इस उड़ान का,
मानो आसमा में पतंग सी जागी है !
गुज़रा कभी तो वक़्त मायूस इस क़दर भी,
अहसास की झड़ी अब सलंग सी जागी है !
चंद लम्हों में ख्याल, न कभी तो सदियों में,
"साबिर" शब्-ए-इंतज़ार(१) पलंग सी जागी है
१ = इंतज़ार की रात
इस ग़ज़ल में कुछ जुदा अंदाज़ है, कुछ अलग लफ़्ज़ों का प्रयोग किया है, गौर फरमाइयेगा !
ReplyDeletejaise ki salang :)
ReplyDeleteshukriya huzoor :)
ReplyDeleteNa soyegi ab aur na khwaab dekhegi,
ReplyDeletetamanna meri kuchh is dhang se jaagi hai...
"sabir" is baar shayari teri ,
dargah-e-dil pe malang si jaagi hai...
Great work once again...
Bhaijaan, khaksar ki zarranawazi ka bahut bahut shukriya, kya baat hai, is ghazal mein izafa karne ke liye anek dhanyawaad, mere paas alfaaz nahi hain.....qaatil baat keh gaye aap - dargah-e-dil pe malang si jaagi hai...shaaandaar.....
ReplyDeletethx dear !!
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