Saturday, February 27, 2010

उमंग

ज़िन्दगी जीने की उमंग सी जागी है,
मेरे दिल में तरंग सी जागी है !

उम्मीद-ओ-आरज़ू में इस क़दर हूँ रोशन,
मानो तहखाने में सुरंग सी जागी है !

अंदाज़ कुछ जुदा है, ऊँची इस उड़ान का,
मानो आसमा में पतंग सी जागी है !

गुज़रा कभी तो वक़्त मायूस इस क़दर भी,
अहसास की झड़ी अब सलंग सी जागी है !

चंद लम्हों में ख्याल, न कभी तो सदियों में,
"साबिर" शब्-ए-इंतज़ार(१) पलंग सी जागी है

१ = इंतज़ार की रात

6 comments:

  1. इस ग़ज़ल में कुछ जुदा अंदाज़ है, कुछ अलग लफ़्ज़ों का प्रयोग किया है, गौर फरमाइयेगा !

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  2. Na soyegi ab aur na khwaab dekhegi,
    tamanna meri kuchh is dhang se jaagi hai...

    "sabir" is baar shayari teri ,
    dargah-e-dil pe malang si jaagi hai...

    Great work once again...

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  3. Bhaijaan, khaksar ki zarranawazi ka bahut bahut shukriya, kya baat hai, is ghazal mein izafa karne ke liye anek dhanyawaad, mere paas alfaaz nahi hain.....qaatil baat keh gaye aap - dargah-e-dil pe malang si jaagi hai...shaaandaar.....

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