वस्ल का मज़ा भी दे रहा है
और हिज्र की सजा भी दे रहा है !
इनकार भी है मुहब्बत से मेरी,
ख़ामोशी से रज़ा भी दे रहा है !
इजाज़त ना दी नशा करने की कभी,
अपनी आँखों का मैक़दा भी दे रहा है !
इत्तेफाक नहीं उसे गुनाहों से मेरे,
मगर वो मुझे आइना भी दे रहा है !
तड़प भी है कभी मुझसे मिलने की,
रोज़ नया बहाना भी दे रहा है !
हिम्मत है अब नए सितम सहने की,
मगर दर्द वो पुराना भी दे रहा है !
ज़िन्दगी को मेरी पतझड़ सा बनाकर,
मौसम वो मुझे सुहाना भी दे रहा है !
डूबा के अपने इश्क की गहराईयों में,
ज़ालिम मुझे किनारा भी दे रहा है !
चैन नहीं सिर्फ ठोकर लगा कर,
अब वो मुझे सहारा भी दे रहा है !
तोहमत लगा के हुनरमंद होने की,
अपनी तारीफों का नजराना भी दे रहा है !
इनकार भी है उसे अपने सजदे से,
मगर इबादत का इशारा भी दे रहा है !
अपनी हरकतों से बाज़ आओ "साबिर",
गालियाँ अब मुझे ज़माना भी दे रहा है!!
bhai....... awesome thoughts embossing...
ReplyDeletedeep one...
Aapke tabla playing ka to main waise hi fan tha... now of thoughts too.. :)
Best Wishes..
Kya khoob hai khayal tera Saabir..
ReplyDeleteDil mera tujhe dua de raha hai.
Thanks a lot !!!
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