Wednesday, May 5, 2010

अंदाज़ !!

वस्ल का मज़ा भी दे रहा है
और हिज्र की सजा भी दे रहा है !


इनकार भी है मुहब्बत से मेरी,
ख़ामोशी से रज़ा भी दे रहा है !


इजाज़त ना दी नशा करने की कभी,
अपनी आँखों का मैक़दा भी दे रहा है !


इत्तेफाक नहीं उसे गुनाहों से मेरे,
मगर वो मुझे आइना भी दे रहा है !


तड़प भी है कभी मुझसे मिलने की,
रोज़ नया बहाना भी दे रहा है !


हिम्मत है अब नए सितम सहने की,
मगर दर्द वो पुराना भी दे रहा है !


ज़िन्दगी को मेरी पतझड़ सा बनाकर,
मौसम वो मुझे सुहाना भी दे रहा है !


डूबा के अपने इश्क की गहराईयों में,
ज़ालिम मुझे किनारा भी दे रहा है !


चैन नहीं सिर्फ ठोकर लगा कर,
अब वो मुझे सहारा भी दे रहा है !


तोहमत लगा के हुनरमंद होने की,
अपनी तारीफों का नजराना भी दे रहा है !


इनकार भी है उसे अपने सजदे से,
मगर इबादत का इशारा भी दे रहा है !


अपनी हरकतों से बाज़ आओ "साबिर",
गालियाँ अब मुझे ज़माना भी दे रहा है!!


3 comments:

  1. bhai....... awesome thoughts embossing...
    deep one...
    Aapke tabla playing ka to main waise hi fan tha... now of thoughts too.. :)
    Best Wishes..

    ReplyDelete
  2. Kya khoob hai khayal tera Saabir..
    Dil mera tujhe dua de raha hai.

    ReplyDelete