उसके बिना अब कोई ख़ुशी भी मुमकिन नहीं,
मगर "साबिर" खुदकुशी भी मुमकिन नहीं !
मुद्दत हुई दिल खोल कर रोये थे कभी,
लेकिन अबी चेहरे पे हंसी भी मुमकिन नहीं !
मुनासिब है सजदा, बंदगी और इबादत भी,
उस फ़रिश्ते से आशिकी भी मुमकिन नहीं !
सोचा था उसे अपना हाल-ए-दिल सुनायेंगे,
मगर अंदाज़ में वो बेबसी भी मुमकिन नहीं !
समा गया है वो जिस्म में रूह की तरह,
उसके बिना अब तो ज़िन्दगी भी मुमकिन नहीं !
उस अहसास को भुला देने की खुशफ़हमी,
अफ़सोस खुद से ये दिल्लगी भी मुमकिन नहीं !
हिम्मत नहीं की उसके ऐतराज़ की वजह समझें,
तमाम कोशिशें ये आखिरी भी मुमकिन नहीं !
क्या करोगे "साबिर", उस अहसास को भुलाकर ?
बिना दर्द के तो शायरी भी मुमकिन नहीं !!
Jism ki chot se to aankh sajal hoti hai...
ReplyDeleteaur rooh jab gham se karaahe to ghazal hoti hai!
shukriya janaab !!!
ReplyDeletetumhare dil ki kahani .......... dard aur dard mein chuppa pyaar... bahut acha likha hai
ReplyDeleteShandar !!
ReplyDeleteThanks a lot !!!
ReplyDeleteThanks so much :)
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