उसकी सोहबत सस्ती तो नहीं,
मेरी मुहब्बत जबर्ज़स्ती तो नहीं !
उसका अहसास सजदा है लेकिन,
उसकी इबादत, बुतपरस्ती तो नहीं !
उसका इनकार है नेमत की तरह,
पर इकरार की मेरी हस्ती तो नहीं !
मुमकिन है मुलाक़ात ख्यालों में, इसलिए
दीदार को आँखें तरसती तो नहीं !
इनायात होगी "साबिर", नाराज़गी के बाद,
बिना गरजे घटा, बरसती तो नहीं !!
waah waah.. .ekdum dhaardaar shayari
ReplyDeleteमुमकिन है मुलाक़ात ख्यालों में, इसलिए
ReplyDeleteदीदार को आँखें तरसती तो नहीं !
वाह! क्या खूब लिखा है... :)
shukriya janaab :)
ReplyDeleteaapi "Saohbat" ka jawab nahee
ReplyDeleteshukriya mahoday !!!
ReplyDeleteAmazing... novel and awesome thoughts!
ReplyDeleteThanks a lot balvinder !!!
ReplyDeletebtw, I am just good at using the words, all credit for thoughts should be given to someone who had been my inspiration throughout this amazing journey.......
ReplyDeleteawesome awesome. very nice :)
ReplyDeletethanks a lot !!
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