Friday, September 24, 2010

राजदां

सुबह भूल गए थे ज़रा मंदिर जाना,
चलो अब उसी की उपासना हो जाए !

बस अब देर है उसके हाँ करने की,
मेरी ज़मीन मेरा आसमाँ हो जाए !

खुदा करे जो करम तो कुछ ऐसा करे,
उसकी निगाहों में मेरा आशियाँ हो जाए !

मेरी मुहब्बत का असर हो इबादत की तरह,
उसे खुद खुदा होने का गुमाँ हो जाए !

अपने जज़्बात पिरोता हूँ इन अल्फाजों में,
उसके दिल में मेरा नाम-ओ-निशाँ हो जाए !

मज़ा तो जब है की मुहब्बत हो दोनों तरफ,
मैं परवाना और वो मेरी शम्मा हो जाए !

दूरियां बढ़ा देती हैं मुहब्बत का असर,
फासले कुछ तेरे मेरे दरमियाँ हो जाए !

उसकी मुहब्बत मांगती है शहादत मेरी,
आओ मुहब्बात में अब फ़ना हो जाए !

हाल-ए-दिल का बयाँ सब से करें तो करें कैसे,
आओ "साबिर" खुद ही के राजदां हो जाए !!!

5 comments:

  1. दूरियां बढ़ा देती हैं मुहब्बत का असर,
    फासले कुछ तेरे मेरे दरमियाँ हो जाए!

    awesome thought!!!

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  2. waah kya baat hai :), great minds think alike :p please share your ghazal as well :)

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