जलवा
जल रहा हूँ मैं, सुलग रहा हूँ मैं,
आईने में अजनबी सा लग रहा हूँ मैं !
ख़याल तेरा आया तो ख़्वाब से की तौबा,
क्यूँ बेसबब यूँ रात भर से जग रहा हूँ मैं !
साया है ये तेरा, या फिर है तेरी आह्ट,
बेज़ा किसी तकल्लुफ से ठग रहा हूँ मैं !
चाँद ग़ज़लें न लिखी जो तेरी आरज़ू में,
'मीर', 'ग़ालिब', 'दाग' से क्यूँ अलग रहा हूँ में !
जलवा है ये "साबिर", अपनी ही आस्तीं में,
हूँ साँप बनके बैठा, क्या लग रहा हूँ मैं !!!
"आईने में अजनबी सा लग रहा हूँ मैं"... बहुत शानदार!
ReplyDeleteshukriya !!!
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