Sunday, February 13, 2011

अंगूर खट्टे हैं


मुहब्बत के इज़हार से डरता हूँ,
मैं उसके इक़रार से डरता हूँ !

छूटता नहीं इन काँटों का दामन,
मगर फूलों की बहार से डरता हूँ !

इनायत से बढ़कर है बेरुखी भी,
पर अब उसके प्यार से डरता हूँ !

ख़्वाबों में संजोकर उस फ़रिश्ते का अक्स,
आखिर क्यूँ मैं दीदार से डरता हूँ !

बस यूँ ही चलता रहे ये खुशनुमा सफ़र,
बेबस मुहब्बत के क़रार से डरता हूँ !

लगता है "साबिर" अंगूर खट्टे हैं,
मैं तो यूँ ही बेकार में डरता हूँ !

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