आस
उससे मिलने के कोई आस भी नहीं, "साबिर" ज़िन्दगी का अहसास भी नहीं !सज़ा भुगत रहा हूँ अपने गुनाहों की भी, उसके बिना तो मैं, जिंदा लाश भी नहीं !यूँ न हारो सबकुछ, दांव पर लगाकर, ज़िन्दगी का खेल है, ताश भी नहीं !खो चुका कहीं, मेरे दिलोदिमाग में वो, और कर रहा हूँ उसको तलाश भी नहीं !
par afsos woh nahi pighali ....:( lolzzzzzz......
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