"साबिर" खुद ही से नफरत है मुझे !
कभी इनकार किया और कभी टाल दिया,
फिर भी उससे मिलने की बड़ी हसरत है मुझे !
मेरे गुनाहों की भी सज़ा नहीं वो देता,
उस फ़रिश्ते से, बस एक शिकायात है मुझे !
नाकाम कोशिशें उसके अहसास को भुलाने की,
क्या अब ज़िन्दगी जीने की इजाज़त है मुझे ?
दिन भर का इंतज़ार, एक दीदार की खातिर,
सौदा महँगा पर फिर भी किफ़ायत है मुझे !
उसे ऐतबार नहीं नाचीज़ की गुलामी का,
मगर मंज़ूर दिल पे उसी की रियासत है मुझे !
अक्सर डूबा रहता हूँ उसी के ख़याल में,
अब और किस बात की फुर्सत है मुझे ?
सारे गम कुबूल हैं उसकी ख़ुशी के वास्ते,
"साबिर" उसी से बेपनाह मुहब्बत है मुझे !!
waah waah...sabir saab...great writing...
ReplyDeletewaah... tadap saaf nazar aa rahi hai.
ReplyDeleteshukriya huzoor......
ReplyDeletebas muhabbat ka asar hai :D
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