वक़्त और हालात बदल गए,
अब तो दिन-रात बदल गए !
था उनके जवाब का इंतज़ार,
अफ़सोस वो सवालात बदल गए !
न बदले गर कभी ज़र्र:(१) भी,
बदले तो काइनात(२) बदल गए !
उन्हें गुमान, अहसास में कमी है,
हम समझे जज़्बात बदल गए !
अब किसका शिकवा है "साबिर",
खुद तुम्हारे ख्यालात बदल गए !
१ ज़र्र: = कण २. काइनात = ब्रह्माण्ड, सृष्टि