Friday, April 23, 2010

परेशानी

टूट के बिखर जाने की निशानी नहीं दिखती,
क्या करूँ जो शक्ल पे परेशानी नहीं दिखती !

बढ़ रहे हैं आज कल दोस्तों के सितम,
और दुश्मनों की मुझ पे मेहरबानी नहीं दिखती!

जन्नत का मज़ा है उस फ़रिश्ते के वस्ल में,
अब हिज्र में भी उसके वीरानी नहीं दिखती !!

शर्मसार हूँ खुद मेरी हरकतों से मैं,
मगर उसे मेरी कोई नादानी नहीं दिखती !!

Friday, April 9, 2010

वो फ़रिश्ता !!!

अपनी मजबूरियों का जब सबब कहा उसने,
मेरी गुस्ताखियों को भी अदब कहा उसने !

वक़्त लगा उसे मेरे जज़्बात को समझने में,
मगर मेरे अंदाज़-ए-बयान को गज़ब कहा उसने !

माफ़ करके तमाम गुनाहों को मेरे,
अपनी इनायतों को सितम कहा उसने !