उसे पाने की कोशिशें, ज़ाया भी नहीं,
खोया है उसे, जिसे पाया भी नहीं !
बार बार खुशामदें और मिन्नतें की मैंने,
पर अफ़सोस, उसने मुझे आज़माया भी नहीं !
फक्र है मुझे मेरी पहली मुहब्बत का,
फिर किसी और से दिल लगाया भी नहीं !
कुछ करिश्मा है उस फ़रिश्ते की हस्ती में,
मेरे छोटे से दिल में वो समाया भी नहीं !
ग़मगीन किया अक्सर, अपना हाल-ए-दिल सुनाकर,
ये क्या सितम है, उसे हंसाया भी नहीं !
उससे मुलाक़ात तो मुश्किल थी, हमेशा की तरह,
कल रात वो मेरे ख़्वाबों में आया भी नहीं !
एक ख़ुशी है, उसका इनकार सुनकर भी,
आखिर वो अपना है, पराया भी नहीं !
कोई कोशिश ना की उसको याद रखने की,
मगर कभी उस अहसास को भुलाया भी नहीं !
और क्या आलम होगा तन्हाई का ?
कड़ी धुप में साथ साया भी नहीं !
बड़ा जुदा है अंदाज़ इश्क का मेरा,
आज तक मैंने उसे सताया भी नहीं !
राइ का पहाड़ किया उसकी तारीफ़ में मैंने,
मगर वो शख्स कभी इतराया भी नहीं !
ज़माने को खबर रही मुहब्बत की मेरी,
जिससे कहना था उसे बताया भी नहीं !
जीत लिया दिल उसका, अपनी कोशिशों से,
और किसी रकीब को हराया भी नहीं !
सुना था बड़ा मीठा है सब्र का फल,
पर जब मिला तो खाया भी नहीं !
ज़िन्दगी नामुमकिन है उसके बिना,
उसने मेरा साथ निभाया भी नहीं !
"साबिर" दिलखुश रहा ज़िन्दगी का सफ़र,
सिवाए गम के कुछ कमाया भी नहीं !!