Friday, November 6, 2009

ख्वाब (गीत)

सुनहरा सुनहरा रूप ये तुम्हारा, जैसे सुबह की किरण नदिया की धारा

खुशबुओं की मस्ती में, जन्नतों की बस्ती में,
और मेरी हस्ती में, बस गए हो तुम,
जगमगाये रात में जैसे कोई तारा

कहीं खो सा जाता हूँ, गुम हो सा जाता हूँ,
जागा सो सा जाता हूँ, तन्हाईयों में,
और क्या मैं नाम दूं, प्यार है तुम्हारा

मंज़र कहीं कोई, साहिल कहीं कोई,
मंजिल कहीं कोई, ढूंढता हूँ मैं,
नाम सोचता हूँ बस और मैं तुम्हारा

ढूंढता हूँ जिसको मैं, खोजता हूँ जिसको मैं,
चाहता हूँ जिसको मैं, कौन है वो,
जानता है तुमको बस दिल ये बेचारा

इन कायानातों में, इन मुलाकातों में,
बातों ही बातों में, समझा तुम्हे,
और अब तुम ही हो दिल का सहारा

वक़्त थम भी जाए तो, नब्ज़ जम भी जाए तो,
और हम ठहर जाएँ, पल के लिए,
साथ न छूटेगा फिर भी ये हमारा

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