खुदा की नेमतों* का जवाब है कोई,
तुम हकीकत हो या फिर, ख्वाब है कोई !
कहता हूँ मैं तुमको, अच्छाईयों का पारस,
छु दो बस तुम उसको, गर ख़राब है कोई !
आज़ाद हूँ ग़मों की काल कोठरी से मैं,
ज़िन्दगी है रोशन, आफताब** है कोई !
कर लूँगा मैं नशा भी, अगर मुझे बता दो,
तुम्हारे अहसास से नशीली, शराब है कोई !
शर्त लगाता हूँ, तुम ढूंढ के बता दो,
तुमसा ज़माने में, गर जनाब है कोई !
घूमा नहीं हूँ दुनिया ऐसा नहीं है "साबिर",
पाया नहीं है तुमसा, लाजवाब है कोई !
(*कृपा, **सूरज)