Friday, December 4, 2009

उसकी शान में !!

खुदा की नेमतों* का जवाब है कोई,
तुम हकीकत हो या फिर, ख्वाब है कोई !

कहता हूँ मैं तुमको, अच्छाईयों का पारस,
छु दो बस तुम उसको, गर ख़राब है कोई !

आज़ाद हूँ ग़मों की काल कोठरी से मैं,
ज़िन्दगी है रोशन, आफताब** है कोई !

कर लूँगा मैं नशा भी, अगर मुझे बता दो,
तुम्हारे अहसास से नशीली, शराब है कोई !

शर्त लगाता हूँ, तुम ढूंढ के बता दो,
तुमसा ज़माने में, गर जनाब है कोई !

घूमा नहीं हूँ दुनिया ऐसा नहीं है "साबिर",
पाया नहीं है तुमसा, लाजवाब है कोई !


(*कृपा, **सूरज)