मेरा इरादा नहीं, कोई शिकायत करने का,
मगर हक है मुझे उसकी इबादत (१) करने का !
नामुमकिन है अब तो भुलाना उसे,
ज़ज्बा नहीं खुद से बगावत(२) करने का !
हाल-ए-दिल सुनाने में किया उसका लिहाज़,
क्या फायदा ऐसी किफायत(३) करने का !
वो वक़्त लगाती है मुझे इनकार करने में,
बहुत शुक्रिया मुझपे इनायत(४) करने का !
कोई तजुर्बा ना था यूँ तो दिल लगाने का,
एक इरादा था बस शहादत(५) करने का !
"साबिर" जबरन ही बना दिया इश्क का माहौल,
अंदाज़ जुदा खुद से अदावत(६) करने का !!
१. इबादत = पूजा २. बगावत = विद्रोह ३. किफायत = कम खर्च करना
४. इनायत = कृपा, रहम ५. शहादत = क़ुरबानी, बलिदान ६. अदावत = दुश्मनी
Sunday, January 24, 2010
Sunday, January 17, 2010
इज़हार-ए-इश्क
इज़हार-ए-इश्क में शर्मिन्दगी कैसी,
"साबिर" उसके बिना ज़िन्दगी कैसी ?
दिल में तमन्ना है उसके सजदे की,
अब किसी और की बंदगी कैसी ?
उसका मिलना सहल(1) है ख्वाबों में,
फिर मुलाक़ात की तश्नगी(2) कैसी ?
बिना जाने उसे अपना बना बैठे,
ये अजब सी दीवानगी कैसी ?
इनकार को मैं उसके, इकरार में बदल दूं,
मकबूल(3) ज़िन्दगी की नुमाइंदगी(4) कैसी ?
समझा नहीं कभी औरों की मुहब्बत को,
"साबिर", दिल की लगी, दिल्लगी(5) कैसी ?
1. सहल = आसान 2. तश्नगी = प्यास
3. मकबूल = सर्वप्रिय, हर दिल अज़ीज़
4. नुमाइंदगी = प्रतिनिधित्व 5. दिल्लगी = मज़ाक
"साबिर" उसके बिना ज़िन्दगी कैसी ?
दिल में तमन्ना है उसके सजदे की,
अब किसी और की बंदगी कैसी ?
उसका मिलना सहल(1) है ख्वाबों में,
फिर मुलाक़ात की तश्नगी(2) कैसी ?
बिना जाने उसे अपना बना बैठे,
ये अजब सी दीवानगी कैसी ?
इनकार को मैं उसके, इकरार में बदल दूं,
मकबूल(3) ज़िन्दगी की नुमाइंदगी(4) कैसी ?
समझा नहीं कभी औरों की मुहब्बत को,
"साबिर", दिल की लगी, दिल्लगी(5) कैसी ?
1. सहल = आसान 2. तश्नगी = प्यास
3. मकबूल = सर्वप्रिय, हर दिल अज़ीज़
4. नुमाइंदगी = प्रतिनिधित्व 5. दिल्लगी = मज़ाक
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