ज़िन्दगी जीने की उमंग सी जागी है,
मेरे दिल में तरंग सी जागी है !
उम्मीद-ओ-आरज़ू में इस क़दर हूँ रोशन,
मानो तहखाने में सुरंग सी जागी है !
अंदाज़ कुछ जुदा है, ऊँची इस उड़ान का,
मानो आसमा में पतंग सी जागी है !
गुज़रा कभी तो वक़्त मायूस इस क़दर भी,
अहसास की झड़ी अब सलंग सी जागी है !
चंद लम्हों में ख्याल, न कभी तो सदियों में,
"साबिर" शब्-ए-इंतज़ार(१) पलंग सी जागी है
१ = इंतज़ार की रात