क्या करूँ जो शक्ल पे परेशानी नहीं दिखती !
बढ़ रहे हैं आज कल दोस्तों के सितम,
और दुश्मनों की मुझ पे मेहरबानी नहीं दिखती!
जन्नत का मज़ा है उस फ़रिश्ते के वस्ल में,
अब हिज्र में भी उसके वीरानी नहीं दिखती !!
शर्मसार हूँ खुद मेरी हरकतों से मैं,
मगर उसे मेरी कोई नादानी नहीं दिखती !!