उसके बिना अब कोई ख़ुशी भी मुमकिन नहीं,
मगर "साबिर" खुदकुशी भी मुमकिन नहीं !
मुद्दत हुई दिल खोल कर रोये थे कभी,
लेकिन अबी चेहरे पे हंसी भी मुमकिन नहीं !
मुनासिब है सजदा, बंदगी और इबादत भी,
उस फ़रिश्ते से आशिकी भी मुमकिन नहीं !
सोचा था उसे अपना हाल-ए-दिल सुनायेंगे,
मगर अंदाज़ में वो बेबसी भी मुमकिन नहीं !
समा गया है वो जिस्म में रूह की तरह,
उसके बिना अब तो ज़िन्दगी भी मुमकिन नहीं !
उस अहसास को भुला देने की खुशफ़हमी,
अफ़सोस खुद से ये दिल्लगी भी मुमकिन नहीं !
हिम्मत नहीं की उसके ऐतराज़ की वजह समझें,
तमाम कोशिशें ये आखिरी भी मुमकिन नहीं !
क्या करोगे "साबिर", उस अहसास को भुलाकर ?
बिना दर्द के तो शायरी भी मुमकिन नहीं !!
Sunday, May 30, 2010
Wednesday, May 5, 2010
अंदाज़ !!
वस्ल का मज़ा भी दे रहा है
और हिज्र की सजा भी दे रहा है !
इनकार भी है मुहब्बत से मेरी,
ख़ामोशी से रज़ा भी दे रहा है !
इजाज़त ना दी नशा करने की कभी,
अपनी आँखों का मैक़दा भी दे रहा है !
इत्तेफाक नहीं उसे गुनाहों से मेरे,
मगर वो मुझे आइना भी दे रहा है !
तड़प भी है कभी मुझसे मिलने की,
रोज़ नया बहाना भी दे रहा है !
हिम्मत है अब नए सितम सहने की,
मगर दर्द वो पुराना भी दे रहा है !
ज़िन्दगी को मेरी पतझड़ सा बनाकर,
मौसम वो मुझे सुहाना भी दे रहा है !
डूबा के अपने इश्क की गहराईयों में,
ज़ालिम मुझे किनारा भी दे रहा है !
चैन नहीं सिर्फ ठोकर लगा कर,
अब वो मुझे सहारा भी दे रहा है !
तोहमत लगा के हुनरमंद होने की,
अपनी तारीफों का नजराना भी दे रहा है !
इनकार भी है उसे अपने सजदे से,
मगर इबादत का इशारा भी दे रहा है !
अपनी हरकतों से बाज़ आओ "साबिर",
गालियाँ अब मुझे ज़माना भी दे रहा है!!
और हिज्र की सजा भी दे रहा है !
इनकार भी है मुहब्बत से मेरी,
ख़ामोशी से रज़ा भी दे रहा है !
इजाज़त ना दी नशा करने की कभी,
अपनी आँखों का मैक़दा भी दे रहा है !
इत्तेफाक नहीं उसे गुनाहों से मेरे,
मगर वो मुझे आइना भी दे रहा है !
तड़प भी है कभी मुझसे मिलने की,
रोज़ नया बहाना भी दे रहा है !
हिम्मत है अब नए सितम सहने की,
मगर दर्द वो पुराना भी दे रहा है !
ज़िन्दगी को मेरी पतझड़ सा बनाकर,
मौसम वो मुझे सुहाना भी दे रहा है !
डूबा के अपने इश्क की गहराईयों में,
ज़ालिम मुझे किनारा भी दे रहा है !
चैन नहीं सिर्फ ठोकर लगा कर,
अब वो मुझे सहारा भी दे रहा है !
तोहमत लगा के हुनरमंद होने की,
अपनी तारीफों का नजराना भी दे रहा है !
इनकार भी है उसे अपने सजदे से,
मगर इबादत का इशारा भी दे रहा है !
अपनी हरकतों से बाज़ आओ "साबिर",
गालियाँ अब मुझे ज़माना भी दे रहा है!!
Subscribe to:
Posts (Atom)