Sunday, July 25, 2010

सोहबत

उसकी सोहबत सस्ती तो नहीं,
मेरी मुहब्बत जबर्ज़स्ती तो नहीं !

उसका अहसास सजदा है लेकिन,
उसकी इबादत, बुतपरस्ती तो नहीं !

उसका इनकार है नेमत की तरह,
पर इकरार की मेरी हस्ती तो नहीं !

मुमकिन है मुलाक़ात ख्यालों में, इसलिए
दीदार को आँखें तरसती तो नहीं !

इनायात होगी "साबिर", नाराज़गी के बाद,
बिना गरजे घटा, बरसती तो नहीं !!

10 comments:

  1. waah waah.. .ekdum dhaardaar shayari

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  2. मुमकिन है मुलाक़ात ख्यालों में, इसलिए
    दीदार को आँखें तरसती तो नहीं !


    वाह! क्या खूब लिखा है... :)

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  3. btw, I am just good at using the words, all credit for thoughts should be given to someone who had been my inspiration throughout this amazing journey.......

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