Friday, September 28, 2012

हस्ती


ये जलवा अपनी हस्ती में है,
जीने का मज़ा मस्ती में है !

नशा तो महँगी शराब का है,
पीने का मज़ा सस्ती में है !

चल रही है अमीरों की दावत,
और फाका आज बस्ती में है !

इनकार-इकरार, वस्ल-हिज़्र,
इश्क का मज़ा परस्ती में है !

कश्ती तो साहिल पर है "साबिर",
मगर तूफाँ आज कश्ती में है !!

Thursday, September 20, 2012

गिलहरी


अखरोट खाती हुई गिलहरी सी कोई,
मेरी ज़िन्दगी में आई थी, परी सी कोई !

महक उठता था दिल उसके तसव्वुर से,
गधे को मिल गई थी घास, हरी सी कोई !

उसकी आमद, ख़ुदा की नेमत सी लगी,
कड़कती सर्दियों में धूप, सुनहरी सी कोई !

मौका भी ना मिला इज़हार-ए-इश्क करने का,
तक़दीर की चाल थी बड़ी, गहरी सी कोई !!