Friday, September 28, 2012

हस्ती


ये जलवा अपनी हस्ती में है,
जीने का मज़ा मस्ती में है !

नशा तो महँगी शराब का है,
पीने का मज़ा सस्ती में है !

चल रही है अमीरों की दावत,
और फाका आज बस्ती में है !

इनकार-इकरार, वस्ल-हिज़्र,
इश्क का मज़ा परस्ती में है !

कश्ती तो साहिल पर है "साबिर",
मगर तूफाँ आज कश्ती में है !!

2 comments:

  1. वाह वाह, कश्ती तो साहिल पर है "साबिर",
    मगर तूफाँ आज कश्ती में है !!....
    बहुत खूब...

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