हिमालय से भी बुलंद उसकी चोटियाँ होती हैं,
ख़ुशनसीब हैं वो बाप जिनकी बेटियाँ होती हैं !
ख़ुशनसीब हैं वो बाप जिनकी बेटियाँ होती हैं !
"साबिर" उनकी रहमत, आखिर बना हूँ इंसान,
परवरदिगार आज तेरा हक अदा किया
परवरदिगार आज तेरा हक अदा किया
वक़्त ऐसा बिता पाना मुश्किल है अभी,
खुद से नज़र मिला पाना मुश्किल है अभी
साबिर क्या कीजे जब ये गज़ब हो जाए,
दर्द की दावा ही दर्द का सबब हो जाए
अंदाज़ कुछ तो है उसमे बात करने का,
वो बुरा भी कहे तो अदब हो जाए
जिंदगी का मुश्किल लम्हा ढूंढ रहा था, मैं भीड़ में उसे तनहा ढूंढ रहा था,
मैंने उसमे किसी फ़रिश्ते को पाया,
वो भी मुझ में इंसान ढूंढ रहा था !!!
करीने से रक्खा हुआ सामान बना दिया,
तुमने मुझे आदमी से इंसान बना दिया !
मेरी शक्ल तो वही है पर आएने बदल गए,
तेरी एक बात से ज़िन्दगी के मायने बदल गए !
"साबिर" उसकी यही बात मुझे पसंद आती है,
वो इनकार करने में भी बड़ा वक़्त लगाती है !
जिंदगी में कभी ऐसे रिश्ते भी बन जाते हैं,
इंसान के दोस्त फ़रिश्ते भी बन जाते हैं !
"साबिर" वो दोस्त मददगार रहा,ज़िन्दगी के मुश्किल वक़्त में,
लगता है उसने ज़िन्दगी को बड़े करीब से देखा है !
मुहब्बत के ये अंदाज़, "साबिर" बड़े लज़ीज़ हैं,
अपनी ख़ुशी से ज्यादा मुझे उनके गम अज़ीज़ हैं !
इससे पहले की ये जज़्बात कम हो जायें,
आओ में और तुम मिलके हम हो जायें !
इस अदा से मुझ पर एहसान कर गए वो,
जान कर भी मुझ को अनजान कर गए वो,
मेरे सलाम पर वोह ज़रा मुस्कुरा दिए,
और मुस्कुरा के मुझ को सलाम कर गए वो !
शायरी चाहने वालों की बस्ती अब आबाद नहीं मिलती,
छोड़ "साबिर" अब शेर सुनाने पर दाद नहीं मिलती !
खुदा ने बख्शीहैं सारे जहाँ की खुशियाँ,
ये इत्तेफाक नहीं की तुम दोस्त हो मेरे !
गिले-शिकवे भी किफायत से करो,
"साबिर" रंजिश भी इनायत से करो !
"साबिर" उम्मीद नहीं अब उनके इकरार की,
बस वजह समझ न आई हमें इनकार की !
फखत कुछ ख्वाहिशें ऐसी,की हर आरजू एक इरादा निकले,
बहुत कम निकले मेरे अरमान,मगर फिर भी कुछ ज्यादा निकले !
मनोवेदनाओं का ये सागर निरंतर सा है,
और उनसे झूझ रहा कोई धुरंदर सा है !
रश्क था ज़माने को इस,परिन्दे की ऊँची उडानों पर,
मगर रातों के अंधेरों में,बे-आशियाँ है वो !
रस्म मुहब्बत की कुछ इस तरह बिताई हमने, के खुद से क्यूँ इस कदर रंजिश निभाई हमने ?इश्क में दानिशमंदी का जानिब नहीं हूँ मैं,
मगर "साबिर" उसके मुनासिब नहीं हूँ मैं !(दानिशमंदी = दिमाग का इस्तेमाल, जानिब = पक्षधर )
मेरी शायरी उसे मेरा दीवाना बना दे,
"साबिर", साबिर हूँ, ग़ालिब नहीं हूँ मैं !!
लगता है उसकी रज़ा कुछ और है,
नाकाम मुहब्बत का मज़ा कुछ और है !
तौबा मयस्सर है बस गुनाहगारों को,
बेगुनाहो की यहाँ सजा कुछ और है !!
"साबिर" उनकी रहमत, आखिर बना हूँ इंसान,
ReplyDeleteपरवरदिगार आज तेरा हक अदा किया!
करीने से रक्खा हुआ सामान बना दिया,
तुमने मुझे आदमी से इंसान बना दिया!
मेरी शक्ल तो वोही है पर आएने बदल गए,
तेरी एक बात से ज़िन्दगी के मायने बदल गए!
"सबीर" उसकी यही बात मुझे पसंद आती है,
वोह इनकार करने में भी बड़ा वक़्त लगाती है
जिंदगी में कभी ऐसे रिश्ते भी बन जाते हैं,
इंसान के दोस्त फ़रिश्ते भी बन जाते हैं!
"साबिर" वोह दोस्त मददगार रहा,
ज़िन्दगी के मुश्किल वक़्त में,
लगता है उसने ज़िन्दगी को बड़े करीब से देखा है!
मुहब्बत के ये अंदाज़, "साबिर" बड़े अजीब हैं,
अपनी ख़ुशी से ज्यादा मुझे उनके गम अज़ीज़ हैं!
इससे पहले की ये जज़्बात कम हो जायें,
आओ में और तुम मिलके हम हो जायें !
इस अदा से मुझ पर एहसान कर गए वो,
जान कर भी मुझ को अनजान कर गए वो,
मेरे सलाम पर वोह ज़रा मुस्कुरा दिए,
और मुस्कुरा के मुझ को सलाम कर गए वो!
शायरी चाहने वालों की बस्ती अब आबाद नहीं मिलती,
छोड़ "साबिर" अब शेर सुनाने पर दाद नहीं मिलती!
खुदा ने बख्शीहैं सारे जहाँ की खुशियाँ,
ये इत्तेफाक नहीं की तुम दोस्त हो मेरे!
गिले-शिकवे भी किफायत से करो,
"साबिर" रंजिश भी इनायत से करो !
"साबिर" उम्मीद नहीं अब उनके इकरार की,
बस वजह समझ न आई हमें इनकार की!
फखत कुछ ख्वाहिशें ऐसी,
की हर आरजू एक इरादा निकले,
बहुत कम निकले मेरे अरमान,
मगर फिर भी कुछ ज्यादा निकले!
मनोवेदनाओं का ये सागर निरंतर सा है,
और उनसे झूझ रहा कोई धुरंदर सा है!
रश्क था ज़माने को इस,
परिन्दे की ऊँची उडानों पर,
मगर रातों के अंधेरों में,
बे-आशियाँ है वो!
रस्म मुहब्बत की कुछ इस तरह बिताई हमने,
के खुद से क्यूँ इस कदर रंजिश निभाई हमने ?
Thx again Richa for converting this to hindi fonts
ReplyDeleteवाह क्या बात है
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