Saturday, October 17, 2009

मुहब्बत की इन्तहां ?

जिंदगी की मुश्किल राहों को इस कदर आसन न कर,
"साबिर" उसे चाहता है तो फिर उसे परेशान न कर.

दुआ कर खुदा से वोह जैसा है वैसा ही रहे,
उसकी फ़िक्र है तो उसे इस दिल का मेहमान न कर.

हाल-ए-दिल कहा उस से इस गुनाह की तौबा,
थोडी शर्म बाकी हो तो खुद पे ये एहसान न कर.

उसका दीदार ही काफी, मिलने के बातें भूल जा,
तू अपनी औकात समझ, ज़मीन को आसमान न कर.

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