Saturday, November 21, 2009

अहसास

आखिर क्यूँ जीने में दिक्कत है मुझे,

"साबिर" खुद ही से नफरत है मुझे !

कभी इनकार किया और कभी टाल दिया,

फिर भी उससे मिलने की बड़ी हसरत है मुझे !

मेरे गुनाहों की भी सज़ा नहीं वो देता,

उस फ़रिश्ते से, बस एक शिकायात है मुझे !

नाकाम कोशिशें उसके अहसास को भुलाने की,

क्या अब ज़िन्दगी जीने की इजाज़त है मुझे ?


दिन भर का इंतज़ार, एक दीदार की खातिर,

सौदा महँगा पर फिर भी किफ़ायत है मुझे !

उसे ऐतबार नहीं नाचीज़ की गुलामी का,

मगर मंज़ूर दिल पे उसी की रियासत है मुझे !

अक्सर डूबा रहता हूँ उसी के ख़याल में,

अब और किस बात की फुर्सत है मुझे ?

सारे गम कुबूल हैं उसकी ख़ुशी के वास्ते,

"साबिर" उसी से बेपनाह मुहब्बत है मुझे !!

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