Thursday, September 20, 2012

गिलहरी


अखरोट खाती हुई गिलहरी सी कोई,
मेरी ज़िन्दगी में आई थी, परी सी कोई !

महक उठता था दिल उसके तसव्वुर से,
गधे को मिल गई थी घास, हरी सी कोई !

उसकी आमद, ख़ुदा की नेमत सी लगी,
कड़कती सर्दियों में धूप, सुनहरी सी कोई !

मौका भी ना मिला इज़हार-ए-इश्क करने का,
तक़दीर की चाल थी बड़ी, गहरी सी कोई !!

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