Tuesday, October 20, 2009

इंतज़ार

तमाम उम्र कट गयी इंतज़ार में कहाँ,
हिज्र-ए-यार का मज़ा वस्ल-ए-यार में कहाँ

चाहता हूँ ख्वाबों में उनकी परछाइयों को,
कमबख्त सुकून है उनके दीदार में कहाँ

खुश हो जाता है दिल उनके इनकार से अक्सर,
वो चैन है लेकिन उनके इकरार में कहाँ

बरक़रार है हुस्न का अपना एक अंदाज़ अब तक,
और हम सोचते थे ये जलवा है बेकार में कहाँ

लुत्फ़ मिलता है उनकी बेवफाइयों से "साबिर",
उनकी वफ़ा अपने शुमार-ए-ऐतबार में कहाँ

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