Sunday, December 5, 2010
जलवा
जल रहा हूँ मैं, सुलग रहा हूँ मैं,
आईने में अजनबी सा लग रहा हूँ मैं !
ख़याल तेरा आया तो ख़्वाब से की तौबा,
क्यूँ बेसबब यूँ रात भर से जग रहा हूँ मैं !
साया है ये तेरा, या फिर है तेरी आह्ट,
बेज़ा किसी तकल्लुफ से ठग रहा हूँ मैं !
चाँद ग़ज़लें न लिखी जो तेरी आरज़ू में,
'मीर', 'ग़ालिब', 'दाग' से क्यूँ अलग रहा हूँ में !
जलवा है ये "साबिर", अपनी ही आस्तीं में,
हूँ साँप बनके बैठा, क्या लग रहा हूँ मैं !!!
Wednesday, November 3, 2010
The pleasure is all mine !!!
There is always a better way,
But this is what I had to say,
Just your presence,
Makes the whole difference,
With all odds to cope,
Your thoughts are the hope,
So to make it fair,
Just be their,
In my dream and thought,
Thank God for what I got !!
But this is what I had to say,
Just your presence,
Makes the whole difference,
With all odds to cope,
Your thoughts are the hope,
So to make it fair,
Just be their,
In my dream and thought,
Thank God for what I got !!
Friday, September 24, 2010
राजदां
सुबह भूल गए थे ज़रा मंदिर जाना,
चलो अब उसी की उपासना हो जाए !
बस अब देर है उसके हाँ करने की,
मेरी ज़मीन मेरा आसमाँ हो जाए !
खुदा करे जो करम तो कुछ ऐसा करे,
उसकी निगाहों में मेरा आशियाँ हो जाए !
मेरी मुहब्बत का असर हो इबादत की तरह,
उसे खुद खुदा होने का गुमाँ हो जाए !
अपने जज़्बात पिरोता हूँ इन अल्फाजों में,
उसके दिल में मेरा नाम-ओ-निशाँ हो जाए !
मज़ा तो जब है की मुहब्बत हो दोनों तरफ,
मैं परवाना और वो मेरी शम्मा हो जाए !
दूरियां बढ़ा देती हैं मुहब्बत का असर,
फासले कुछ तेरे मेरे दरमियाँ हो जाए !
उसकी मुहब्बत मांगती है शहादत मेरी,
आओ मुहब्बात में अब फ़ना हो जाए !
हाल-ए-दिल का बयाँ सब से करें तो करें कैसे,
आओ "साबिर" खुद ही के राजदां हो जाए !!!
चलो अब उसी की उपासना हो जाए !
बस अब देर है उसके हाँ करने की,
मेरी ज़मीन मेरा आसमाँ हो जाए !
खुदा करे जो करम तो कुछ ऐसा करे,
उसकी निगाहों में मेरा आशियाँ हो जाए !
मेरी मुहब्बत का असर हो इबादत की तरह,
उसे खुद खुदा होने का गुमाँ हो जाए !
अपने जज़्बात पिरोता हूँ इन अल्फाजों में,
उसके दिल में मेरा नाम-ओ-निशाँ हो जाए !
मज़ा तो जब है की मुहब्बत हो दोनों तरफ,
मैं परवाना और वो मेरी शम्मा हो जाए !
दूरियां बढ़ा देती हैं मुहब्बत का असर,
फासले कुछ तेरे मेरे दरमियाँ हो जाए !
उसकी मुहब्बत मांगती है शहादत मेरी,
आओ मुहब्बात में अब फ़ना हो जाए !
हाल-ए-दिल का बयाँ सब से करें तो करें कैसे,
आओ "साबिर" खुद ही के राजदां हो जाए !!!
Sunday, July 25, 2010
सोहबत
उसकी सोहबत सस्ती तो नहीं,
मेरी मुहब्बत जबर्ज़स्ती तो नहीं !
उसका अहसास सजदा है लेकिन,
उसकी इबादत, बुतपरस्ती तो नहीं !
उसका इनकार है नेमत की तरह,
पर इकरार की मेरी हस्ती तो नहीं !
मुमकिन है मुलाक़ात ख्यालों में, इसलिए
दीदार को आँखें तरसती तो नहीं !
इनायात होगी "साबिर", नाराज़गी के बाद,
बिना गरजे घटा, बरसती तो नहीं !!
मेरी मुहब्बत जबर्ज़स्ती तो नहीं !
उसका अहसास सजदा है लेकिन,
उसकी इबादत, बुतपरस्ती तो नहीं !
उसका इनकार है नेमत की तरह,
पर इकरार की मेरी हस्ती तो नहीं !
मुमकिन है मुलाक़ात ख्यालों में, इसलिए
दीदार को आँखें तरसती तो नहीं !
इनायात होगी "साबिर", नाराज़गी के बाद,
बिना गरजे घटा, बरसती तो नहीं !!
Monday, July 12, 2010
Boys can't cry ?
Punished for the mistakes that I never did,
And yes, I am the smaller god's kid,
Still I can't cry, because I am a boy ?
Cheated by the best of friends,
Yes I could never follow the trends,
Still I can't cry, because I am a boy ?
Was a curse because I am talented,
And that's the only reason, I was rejected ?
Still I can't cry, because I am a boy ?
Could never fly as I never had wings,
Gifted with ability to mess up simple things,
Still I can't cry, because I am a boy ?
Never knew reason of exactly what happened,
All I know is that my last words were unheard,
Still I can't cry, because I am a boy ?
Sunday, July 4, 2010
FRIENDS !!
Like an oasis in the desert,
Their presence heals the hurt.
As the stars illuminate in the sky,
They are always there, don't know why.
But I know that they are always there,
And I have many concerns to share.
The destination and journey both are bound,
But blessed to have these angels around.
They are with you when you break the trends,
And no wonder they are called "Friends" !!
Their presence heals the hurt.
As the stars illuminate in the sky,
They are always there, don't know why.
But I know that they are always there,
And I have many concerns to share.
The destination and journey both are bound,
But blessed to have these angels around.
They are with you when you break the trends,
And no wonder they are called "Friends" !!
Sunday, May 30, 2010
उसके बिना
उसके बिना अब कोई ख़ुशी भी मुमकिन नहीं,
मगर "साबिर" खुदकुशी भी मुमकिन नहीं !
मुद्दत हुई दिल खोल कर रोये थे कभी,
लेकिन अबी चेहरे पे हंसी भी मुमकिन नहीं !
मुनासिब है सजदा, बंदगी और इबादत भी,
उस फ़रिश्ते से आशिकी भी मुमकिन नहीं !
सोचा था उसे अपना हाल-ए-दिल सुनायेंगे,
मगर अंदाज़ में वो बेबसी भी मुमकिन नहीं !
समा गया है वो जिस्म में रूह की तरह,
उसके बिना अब तो ज़िन्दगी भी मुमकिन नहीं !
उस अहसास को भुला देने की खुशफ़हमी,
अफ़सोस खुद से ये दिल्लगी भी मुमकिन नहीं !
हिम्मत नहीं की उसके ऐतराज़ की वजह समझें,
तमाम कोशिशें ये आखिरी भी मुमकिन नहीं !
क्या करोगे "साबिर", उस अहसास को भुलाकर ?
बिना दर्द के तो शायरी भी मुमकिन नहीं !!
मगर "साबिर" खुदकुशी भी मुमकिन नहीं !
मुद्दत हुई दिल खोल कर रोये थे कभी,
लेकिन अबी चेहरे पे हंसी भी मुमकिन नहीं !
मुनासिब है सजदा, बंदगी और इबादत भी,
उस फ़रिश्ते से आशिकी भी मुमकिन नहीं !
सोचा था उसे अपना हाल-ए-दिल सुनायेंगे,
मगर अंदाज़ में वो बेबसी भी मुमकिन नहीं !
समा गया है वो जिस्म में रूह की तरह,
उसके बिना अब तो ज़िन्दगी भी मुमकिन नहीं !
उस अहसास को भुला देने की खुशफ़हमी,
अफ़सोस खुद से ये दिल्लगी भी मुमकिन नहीं !
हिम्मत नहीं की उसके ऐतराज़ की वजह समझें,
तमाम कोशिशें ये आखिरी भी मुमकिन नहीं !
क्या करोगे "साबिर", उस अहसास को भुलाकर ?
बिना दर्द के तो शायरी भी मुमकिन नहीं !!
Wednesday, May 5, 2010
अंदाज़ !!
वस्ल का मज़ा भी दे रहा है
और हिज्र की सजा भी दे रहा है !
इनकार भी है मुहब्बत से मेरी,
ख़ामोशी से रज़ा भी दे रहा है !
इजाज़त ना दी नशा करने की कभी,
अपनी आँखों का मैक़दा भी दे रहा है !
इत्तेफाक नहीं उसे गुनाहों से मेरे,
मगर वो मुझे आइना भी दे रहा है !
तड़प भी है कभी मुझसे मिलने की,
रोज़ नया बहाना भी दे रहा है !
हिम्मत है अब नए सितम सहने की,
मगर दर्द वो पुराना भी दे रहा है !
ज़िन्दगी को मेरी पतझड़ सा बनाकर,
मौसम वो मुझे सुहाना भी दे रहा है !
डूबा के अपने इश्क की गहराईयों में,
ज़ालिम मुझे किनारा भी दे रहा है !
चैन नहीं सिर्फ ठोकर लगा कर,
अब वो मुझे सहारा भी दे रहा है !
तोहमत लगा के हुनरमंद होने की,
अपनी तारीफों का नजराना भी दे रहा है !
इनकार भी है उसे अपने सजदे से,
मगर इबादत का इशारा भी दे रहा है !
अपनी हरकतों से बाज़ आओ "साबिर",
गालियाँ अब मुझे ज़माना भी दे रहा है!!
और हिज्र की सजा भी दे रहा है !
इनकार भी है मुहब्बत से मेरी,
ख़ामोशी से रज़ा भी दे रहा है !
इजाज़त ना दी नशा करने की कभी,
अपनी आँखों का मैक़दा भी दे रहा है !
इत्तेफाक नहीं उसे गुनाहों से मेरे,
मगर वो मुझे आइना भी दे रहा है !
तड़प भी है कभी मुझसे मिलने की,
रोज़ नया बहाना भी दे रहा है !
हिम्मत है अब नए सितम सहने की,
मगर दर्द वो पुराना भी दे रहा है !
ज़िन्दगी को मेरी पतझड़ सा बनाकर,
मौसम वो मुझे सुहाना भी दे रहा है !
डूबा के अपने इश्क की गहराईयों में,
ज़ालिम मुझे किनारा भी दे रहा है !
चैन नहीं सिर्फ ठोकर लगा कर,
अब वो मुझे सहारा भी दे रहा है !
तोहमत लगा के हुनरमंद होने की,
अपनी तारीफों का नजराना भी दे रहा है !
इनकार भी है उसे अपने सजदे से,
मगर इबादत का इशारा भी दे रहा है !
अपनी हरकतों से बाज़ आओ "साबिर",
गालियाँ अब मुझे ज़माना भी दे रहा है!!
Friday, April 23, 2010
परेशानी
टूट के बिखर जाने की निशानी नहीं दिखती,
क्या करूँ जो शक्ल पे परेशानी नहीं दिखती !
बढ़ रहे हैं आज कल दोस्तों के सितम,
और दुश्मनों की मुझ पे मेहरबानी नहीं दिखती!
जन्नत का मज़ा है उस फ़रिश्ते के वस्ल में,
अब हिज्र में भी उसके वीरानी नहीं दिखती !!
शर्मसार हूँ खुद मेरी हरकतों से मैं,
मगर उसे मेरी कोई नादानी नहीं दिखती !!
क्या करूँ जो शक्ल पे परेशानी नहीं दिखती !
बढ़ रहे हैं आज कल दोस्तों के सितम,
और दुश्मनों की मुझ पे मेहरबानी नहीं दिखती!
जन्नत का मज़ा है उस फ़रिश्ते के वस्ल में,
अब हिज्र में भी उसके वीरानी नहीं दिखती !!
शर्मसार हूँ खुद मेरी हरकतों से मैं,
मगर उसे मेरी कोई नादानी नहीं दिखती !!
Friday, April 9, 2010
वो फ़रिश्ता !!!
अपनी मजबूरियों का जब सबब कहा उसने,
मेरी गुस्ताखियों को भी अदब कहा उसने !
वक़्त लगा उसे मेरे जज़्बात को समझने में,
मगर मेरे अंदाज़-ए-बयान को गज़ब कहा उसने !
माफ़ करके तमाम गुनाहों को मेरे,
अपनी इनायतों को सितम कहा उसने !
मेरी गुस्ताखियों को भी अदब कहा उसने !
वक़्त लगा उसे मेरे जज़्बात को समझने में,
मगर मेरे अंदाज़-ए-बयान को गज़ब कहा उसने !
माफ़ करके तमाम गुनाहों को मेरे,
अपनी इनायतों को सितम कहा उसने !
Wednesday, March 10, 2010
बदलता वक़्त
वक़्त और हालात बदल गए,
अब तो दिन-रात बदल गए !
था उनके जवाब का इंतज़ार,
अफ़सोस वो सवालात बदल गए !
न बदले गर कभी ज़र्र:(१) भी,
बदले तो काइनात(२) बदल गए !
उन्हें गुमान, अहसास में कमी है,
हम समझे जज़्बात बदल गए !
अब किसका शिकवा है "साबिर",
खुद तुम्हारे ख्यालात बदल गए !
१ ज़र्र: = कण २. काइनात = ब्रह्माण्ड, सृष्टि
अब तो दिन-रात बदल गए !
था उनके जवाब का इंतज़ार,
अफ़सोस वो सवालात बदल गए !
न बदले गर कभी ज़र्र:(१) भी,
बदले तो काइनात(२) बदल गए !
उन्हें गुमान, अहसास में कमी है,
हम समझे जज़्बात बदल गए !
अब किसका शिकवा है "साबिर",
खुद तुम्हारे ख्यालात बदल गए !
१ ज़र्र: = कण २. काइनात = ब्रह्माण्ड, सृष्टि
Saturday, February 27, 2010
उमंग
ज़िन्दगी जीने की उमंग सी जागी है,
मेरे दिल में तरंग सी जागी है !
उम्मीद-ओ-आरज़ू में इस क़दर हूँ रोशन,
मानो तहखाने में सुरंग सी जागी है !
अंदाज़ कुछ जुदा है, ऊँची इस उड़ान का,
मानो आसमा में पतंग सी जागी है !
गुज़रा कभी तो वक़्त मायूस इस क़दर भी,
अहसास की झड़ी अब सलंग सी जागी है !
चंद लम्हों में ख्याल, न कभी तो सदियों में,
"साबिर" शब्-ए-इंतज़ार(१) पलंग सी जागी है
१ = इंतज़ार की रात
मेरे दिल में तरंग सी जागी है !
उम्मीद-ओ-आरज़ू में इस क़दर हूँ रोशन,
मानो तहखाने में सुरंग सी जागी है !
अंदाज़ कुछ जुदा है, ऊँची इस उड़ान का,
मानो आसमा में पतंग सी जागी है !
गुज़रा कभी तो वक़्त मायूस इस क़दर भी,
अहसास की झड़ी अब सलंग सी जागी है !
चंद लम्हों में ख्याल, न कभी तो सदियों में,
"साबिर" शब्-ए-इंतज़ार(१) पलंग सी जागी है
१ = इंतज़ार की रात
Friday, February 19, 2010
उसका दर्द !!
आँखों में आंसू, लब पे हंसी है कोई,
"साबिर" हर गम में भी ख़ुशी है कोई !
इक अंजना सा दर्द है उसकी आँखों में,
हँसते चेहरे में छुपी उदासी है कोई !
वो खुश नहीं हैं मुझे इनकार करके भी,
मिलने की चाहत में रूह प्यासी है कोई !
मेरी किस्मत में है परस्तिश(१) उसकी,
मुहब्बत से बेहतर भी बंदगी है कोई !!
१ परस्तिश = पूजा
"साबिर" हर गम में भी ख़ुशी है कोई !
इक अंजना सा दर्द है उसकी आँखों में,
हँसते चेहरे में छुपी उदासी है कोई !
वो खुश नहीं हैं मुझे इनकार करके भी,
मिलने की चाहत में रूह प्यासी है कोई !
मेरी किस्मत में है परस्तिश(१) उसकी,
मुहब्बत से बेहतर भी बंदगी है कोई !!
१ परस्तिश = पूजा
Sunday, January 24, 2010
इबादत
मेरा इरादा नहीं, कोई शिकायत करने का,
मगर हक है मुझे उसकी इबादत (१) करने का !
नामुमकिन है अब तो भुलाना उसे,
ज़ज्बा नहीं खुद से बगावत(२) करने का !
हाल-ए-दिल सुनाने में किया उसका लिहाज़,
क्या फायदा ऐसी किफायत(३) करने का !
वो वक़्त लगाती है मुझे इनकार करने में,
बहुत शुक्रिया मुझपे इनायत(४) करने का !
कोई तजुर्बा ना था यूँ तो दिल लगाने का,
एक इरादा था बस शहादत(५) करने का !
"साबिर" जबरन ही बना दिया इश्क का माहौल,
अंदाज़ जुदा खुद से अदावत(६) करने का !!
१. इबादत = पूजा २. बगावत = विद्रोह ३. किफायत = कम खर्च करना
४. इनायत = कृपा, रहम ५. शहादत = क़ुरबानी, बलिदान ६. अदावत = दुश्मनी
मगर हक है मुझे उसकी इबादत (१) करने का !
नामुमकिन है अब तो भुलाना उसे,
ज़ज्बा नहीं खुद से बगावत(२) करने का !
हाल-ए-दिल सुनाने में किया उसका लिहाज़,
क्या फायदा ऐसी किफायत(३) करने का !
वो वक़्त लगाती है मुझे इनकार करने में,
बहुत शुक्रिया मुझपे इनायत(४) करने का !
कोई तजुर्बा ना था यूँ तो दिल लगाने का,
एक इरादा था बस शहादत(५) करने का !
"साबिर" जबरन ही बना दिया इश्क का माहौल,
अंदाज़ जुदा खुद से अदावत(६) करने का !!
१. इबादत = पूजा २. बगावत = विद्रोह ३. किफायत = कम खर्च करना
४. इनायत = कृपा, रहम ५. शहादत = क़ुरबानी, बलिदान ६. अदावत = दुश्मनी
Sunday, January 17, 2010
इज़हार-ए-इश्क
इज़हार-ए-इश्क में शर्मिन्दगी कैसी,
"साबिर" उसके बिना ज़िन्दगी कैसी ?
दिल में तमन्ना है उसके सजदे की,
अब किसी और की बंदगी कैसी ?
उसका मिलना सहल(1) है ख्वाबों में,
फिर मुलाक़ात की तश्नगी(2) कैसी ?
बिना जाने उसे अपना बना बैठे,
ये अजब सी दीवानगी कैसी ?
इनकार को मैं उसके, इकरार में बदल दूं,
मकबूल(3) ज़िन्दगी की नुमाइंदगी(4) कैसी ?
समझा नहीं कभी औरों की मुहब्बत को,
"साबिर", दिल की लगी, दिल्लगी(5) कैसी ?
1. सहल = आसान 2. तश्नगी = प्यास
3. मकबूल = सर्वप्रिय, हर दिल अज़ीज़
4. नुमाइंदगी = प्रतिनिधित्व 5. दिल्लगी = मज़ाक
"साबिर" उसके बिना ज़िन्दगी कैसी ?
दिल में तमन्ना है उसके सजदे की,
अब किसी और की बंदगी कैसी ?
उसका मिलना सहल(1) है ख्वाबों में,
फिर मुलाक़ात की तश्नगी(2) कैसी ?
बिना जाने उसे अपना बना बैठे,
ये अजब सी दीवानगी कैसी ?
इनकार को मैं उसके, इकरार में बदल दूं,
मकबूल(3) ज़िन्दगी की नुमाइंदगी(4) कैसी ?
समझा नहीं कभी औरों की मुहब्बत को,
"साबिर", दिल की लगी, दिल्लगी(5) कैसी ?
1. सहल = आसान 2. तश्नगी = प्यास
3. मकबूल = सर्वप्रिय, हर दिल अज़ीज़
4. नुमाइंदगी = प्रतिनिधित्व 5. दिल्लगी = मज़ाक
Subscribe to:
Posts (Atom)